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बच्चे / कुमार अनुपम

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क.
 
गेंद के टप्पों के साथ
उछल रही हैं उनकी किलकारियाँ
अंतरिक्ष तलक
 
सूरज तनिक सहमा हुआ निहारता है उनकी तरफ
कि कहीं गेंद समझ
बच्चे बंद न कर लें अपनी मुट्ठियों में उसे
कि फिर छूटना ही कौन चाहे उनकी कोमल पकड़ से
 
ख.
 
किसी सीधी रेखा की छत्रछाया
अथवा
रेखित कोष्ठक के कटघरे में
नहीं समा रहे
 
सध नहीं रहे
उनसे सुंदर-सुंदर अक्षर और अंक
इसीलिए वे बच्चे हैं
सृजनात्मक क्षणों में रची
कविता के अक्षरों की तरह फक्कड़।