भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजनबी / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} {{KKCatKavita}} <poem> तो ये अभी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तो ये अभी तक हैं इस धरती पर, इस गाँव में,
पिछले एक साल में आई न याद एक बार
थीं ये भी पास वहाँ उस दिन पर मैं देखता रहा मरे साँप को
यह लाठी कब से है इनका सहारा
अनुमान से बता दो पता है यह तुम्हारे बेटे का बर्थ डे नहीं है
क्या अब भी ये कह पाती हैं सात किस्से लगातार
मैं मिलूँ तो मगर कहाँ से शुरू करूँ बात
क्या कोई बीच की भाषा है जिसमें माँगूँ क्षमा
कि भूला उनकी उपस्थिति मैं कुपात्र
जबकि थीं वो ढाई घर दूर मात्र