भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस भूख में / रविकान्त
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:43, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> वही खेत चाहिए ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
वही खेत चाहिए
जिसके बालों की चमक
मेरी नींद में द्वंद्व मचाती है
वह नहीं
खिला-खिला
चाहिए नहीं
खिंचाव, जिससे
जल खींच कर
अपनी पत्तियों में हरियाली भर सकूँ
गँदले पानी को पचाने वाली कोशिकाएँ
इस भूख में...
तुम्हारे आगे भरता हुआ
झर रहा हूँ तुम्हारे ही आगे
तुम समझते हो?
- नीचे जमीन, कितना नीचे है!