भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पृथ्वी पर आसमान / रविकान्त

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:37, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> सर्वांग चिन्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सर्वांग चिन्न
दो बिन्ना पृथ्वी
ऊपर एक आसमान
याद कर
वह मद्धिम
पहुँच रही चीख
खिन्न हैं
सूर्य, तारक-गण
इसीलिए
भयावह हैं आकृतियाँ
दहशत में मरुत

कितनी रुग्ण है
आकाश की यह राक्षसी देह

खुशरंग साथिनों की दमक के सिवा
कुछ नहीं है पृथ्वी पर
काम का