भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुरे दिनों में / रविकान्त
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> कुछ लोगों को अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कुछ लोगों को
अपने हाथ का गुड़ पसंद नहीं होता
वे अपने अच्छे दिनों में
उदास रहते हैं
कुछ लोग
अपने अच्छे दिनों का उपयोग करते हैं
और बचा नहीं रखते कुछ
अपने बुरे दिनों के लिए
कुछ लोगों के अच्छे दिन
इतने अच्छे होते हैं कि
उन्हें अनुमान ही नहीं होता
कि आएँगे बुरे दिन
कुछ लोग
अपने बुरे दिनों में खो देते हैं
अपने अच्छे दिन