भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राह / रविकान्त
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम्हारी राह ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुम्हारी राह आसान है
और मेरी भी
राह आसान होती है सबकी
अपनी आसान राह पर
चलना बंद कर देते हैं हम
राह कठिन हो जाती है
हमारे कदम
आसान हो जाते हैं
लंबी हो जाती हैं राहें
हम अपने पौरुष को
अपनी आसानियों के हाथों
गिरवी रखते हैं