भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतिहास / अनिता भारती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:56, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह=एक क़दम मेरा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय की धूल में दबे
हजारों कदमों की परत हटाती हूं
तो उसके अनोखेपन
त्याग और बलिदान पर
मुग्ध हो जाती हूं

पर
दूसरे ही पल मन टीस उठता है
इतने बेशकिमती कदमों में
मेरा अपना कुछ भी नहीं?
सुबह की धूप
दिन का उजियारा
चमकती स्वच्छ श्वेत चांदनी
कुछ भी हमारा नहीं है?

लो,
इतिहास से भी हमारा नाम गायब है
बेदखल हैं हम उससे
फाड दिया गया है
हमारे संघर्ष का पन्ना,

हमें शिकायत है
उस अबोध, निर्मम इतिहास से
कि जिसके लिए
हम दिन-रात
सुबह-शाम
आँधी- तूफान में लड़ते रहे
बनाते रहे अपने निशां
वो ही विद्रूपता से
हमारी झुलसी नंगी पीठ पर
हाथ रख कहता है
तुम अपने पैरों से कब चलीं
तुम्हारे पैर थे ही कब?
तुम तो बस हम पर थीं आश्रित
मैंने ही तुम्हें दी
छाया-माया-काया
अब तुम्हें और क्या चाहिए?

साथियों,
ये इतिहास झूठा है
मुझे इस पर विश्वास नहीं
ये कभी हमारा था ही नही
मैं तुम्हें फिर से खंगालूगी
मैं कटिबद्ध हूँ
क्योंकि ज़रूरत है आज ये बताना
कि इतने ढेर से कदमों के बीच
एक कदम मेरा भी है...