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एक स्मृतिगीत / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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वेदना, संवेदना के मूक थे रुदन
पीर गुंथी शब्दों में गीत बन गए
बह रहे हैं अश्रु, चले खाली कर नयन
स्मृति-अशेष ही अब मीत बन गए
पुण्य मेरी प्रार्थना और पुण्य है पूजन
पुण्य ही प्रसाद थे अतीत बन गए
कामना के पुष्प लिए पखारे चरन
समय-धूलि में मिले प्रतीत हो गए
आयु के सितार बजे, राग थे तरुन
तार टूटे शोक-संगीत हो गए
देह-शाख संवारी, कर दिया चन्दन
भूमि में मशान के मिल रीत हो गए
काया है बदल रही न बदले शपा मन
पंचरंग वसन वे नवनीत हो गए