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आह्वान / धीरेन्द्र अस्थाना

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तोड़ दो सपनों की दीवारें,
मत रोको सृजन के चरण को,
फैला दो विश्व के वितान पर,
मत टोको वर्जन के वरण को!

जाने कितनी आयेंगी मग में बाधाएँ,
कहीं तो इन बाधाओं का अंत होगा ही.
कौन सका है रोक राह प्रगति की,
प्रात रश्मियों के स्वागत का यत्न होगा ही!

प्रलय के विलय से न हो भीत,
तृण- तृण को सृजन से जुड़ने दो
नीड़ से निकले नभचर को
अभय अम्बर में उड़ने दो,

जला कर ज्योति पुंजों को,
हटा दो तम के आवरण को,
तोड़ दो सपनों की दीवारें,
मत रोको सृजन के चरण को!