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ग्रीष्‍मोद्यान / आन्ना अख़्मातवा

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मैं जाना चाहती हूँ गुलाबों के पास
उस एकमात्र उद्यान में
संसार में सबसे अच्‍छी बाड़ हो जहाँ

जहाँ प्रतिमाओं को याद हो मेरा यौवन
जिनकी याद आती हो मुझे नेवा की जलधारा के नीचे,

राजसी ठाठ में खड़े मेपलों की महकती खामोशी में
सुनाई देती हो जहाजों के मस्‍तूलों की आवाज,

और एक हंस पहले की तरह तैरता हो युगों के बीच से
और अपने प्रतिबिंब के सौंदर्य पर होता हो अभिभूत,

मृतप्रायः सो रहे हों जहाँ हजार-हजार पाँव
मित्रों और शत्रुओं के, शत्रुओं और मित्रों के,

जहाँ आहिस्‍ता से बतियाती हो मेरी श्‍वेत रातें
किसी के गहन गोपनीय प्रेम के बारे में,

मोतियों और मणियों की तरह कुछ चमकता हो जहाँ
पर रोशनी का स्रोत रहस्‍यमय ढंग से छिपा हो कहीं और।