भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर फागुन आया / मानोशी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:48, 29 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिवस बाद आई स्मृति सुगंध,
यह मन भरमाया,
फिर फागुन आया।

दुल्हन मन, हरित वसन,
सुरभित तन, पीत वरन,
प्रेम रंग में निमग्न,
कुमकुम बिखराया,
फिर फागुन आया।

बिंधे तीर, मन अधीर,
साजन बिन सित अबीर,
कोकिल स्वर, विरह पीर,
चहुं दिक महुआया,
फिर फागुन आया।

घर विदेश, स्वप्न-देश
चमक-दमक, भिन्न वेश,
दूर हुआ, प्रिय स्वदेश,
हिय घिर घन छाया,
फिर फागुन आया।