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अनुरोध / शशि सहगल
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मुझसे/जीने की ताकत को
छीन लिया गया है।
थमा दी है उन्होंने
मेरे हाथों में
अविश्वास की बैसाखियाँ
और कहते हैं
मानो, तुम्हें कुछ नहीं हुआ।
अधमरी-सी मैं
जुटाना चाहती हूँ
अपने में
वह पहले-सी ताकत
पर
रीढ़ की हड्डी का एक-एक पोर
बिखर गया है धरती पर
जोड़ दो ना उसे/तुम
देकर अपना पहला विश्वास।