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झरोखा / शशि सहगल

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उसने मुझे कहा
घुटन से बचना है तो कविता लिखो
मन की दीवारों की
सभी बंद खिड़कियाँ खोल डालो
आने दो धूप हवा पानी
मन में आँगन में
हो सकता है कोई गौरैया
बनाना चाहे घोंसला
मत रोकना उसे
खुली खिड़कियों से स्वागत करना उसका
बेजान दीवारों से भरे सन्नाटे को
ज़िन्दगी से भर देगी
छोटी सी चिड़िया
मेरे दोस्त!
अपने से बाहर से निकलना ही
तरलता का विस्तार है