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मत पूछो / कुमार रवींद्र

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मत पूछो
यह गीत हमारा
कहाँ-कहाँ से सुर है लाया
 
कठफुड़वा की ठक-ठक से
या किसी
टिटहरी की गुहार से
सोंधी माटी की महकन से
बरखा की पहली फुहार से
 
या फिर
उस बूढ़े बरगद से
जो देता है सबको छाया
 
बुलबुल की मीठी बोली से
या कोयल की हठी टेर से
या उस सुग्गे की बानी से
झाँक रहा जो है कनेर से
 
हँसते बच्चे की
आँखों से
जिसने रची नेह की माया
 
पत्तों-सँग ता-थैया करती
सुखी हवा की
या थिरकन से
अम्मा जिसको गाती थीं नित
या मीरा के उसी भजन से
 
ढोलक-ताली
औ' मृदंग से
हमने है सुर-ताल चुराया