भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरे बावरे / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अरे बावरे
गीत न बाँचो अमराई का
महानगर में
 
किसको फुर्सत
मुड़कर देखे
बौर आम पर कब आता है
कौन सुपर्णा पक्षी है
जो पके फलों को ही खाता है
 
वे क्या जानें
वह बतियाता है
सबसे ढाई आखर में
 
इस नगरी में
सुनो, ठहर कर
कोई बात नहीं करता है
उन्हें क्या पता
पेड़ बिलखता
पीला पत्ता जब झरता है
 
कौन समझ पाएगा
जो तुम
कहते आंसू-भीगे स्वर में
 
महानगर में
सबको जल्दी
आसमान को छू लेने की
गीत कह रहा
कोटर में छिप
पक्षी के अंडे सेने की
 
जग के लेखे
तुम मूरख हो
वक्त गँवाते इधर-उधर में