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सुनो इन दिनों / कुमार रवींद्र
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सुनो, इन दिनों
सच में, साधो
दुखी बहुत हैं गीत हमारे
वही-वही हैं दुर्घटनाएँ
रोज़-रोज़ ये आहत होते
जहाँ कहीं भी वे होते हैं
इनको मिलते बच्चे रोते
माँ के आँचल में भी
इनको
मिले सिर्फ़ आँसू ही खारे
कल ये केसर-घाटी में थे
घाव लगा इनके सीने में
दुनिया भर के हत्यारे हैं
छिपे मिले घर के जीने में
चीख रहे संतूर
मिले हैं
लहू-नहाये हमें शिकारे
नये मसीहे सिखा रहे हैं
राक्षस-कुल की मर्यादाएँ
गीत करें क्या
उन्हें दिख रहीं-
घर-घर व्यापीं हैं विपदाएँ
सूर्यवंश के
विरुद करें क्या
बाँट रहे हैं दिन अँधियारे