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विस्मृति / सुभाष काक
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क्यों कि विस्मृरत हैं हम,
नया जन्मि नहीं
हो सकता हमारा।
बंधे हैं हम
अतीत में,
अन्धे समान।
चिह्न प्राप्तिी
जीवन का लक्ष्यर
एकमात्र --
भक्ति्,
याचना,
योग।
आतुरता,
पूर्ण होकर पीडा की,
मधु को चखकर
विष पीने की।
काल की
सूजन दी देखी है
हमने अभी,
अतीत भविष्य को
गर्भे समेटे,
प्रस्फुटित
हुआ नहीं।
इसका जन्म
मायावी होगा
इसका शोषण है
स्मृवतिधारा
ऊर्जा है
स्वरों की झंकार।
पर यह यायावर मन
इन्द्रजाल की
भूलभुलैया में
भटक गया
विस्मृति की प्रतिगूंज
सुनकर
सम्मोहित।