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सुब्ह / सज्जाद बाक़र रिज़वी

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आख़िर-ए-शब थी
वो सेहन-ए-मस्जिद में बे-सुद पड़ा
मैं ने उस को जगाया

उठ
ये शहादत का तकबीर का वक़्त है
दुआओं की तस्ख़ीर का वक्त है
वो उठा मेरा क़ातिल जिस मैं ने ख़ुद ही उठाया
उठा
और मेहराब-ए-मस्जिद में मेरे लहू से चराग़ाँ हुआ