भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत (13) / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=रेत रेत धड़क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कहते हैं
यहीं कही
विलूप्त हुई सरस्वती
किंतु
नहीं हो पाई विलुप्त
बहती है सदा नीरा
आज भी
आदमी के मन में ।