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एम्नेजिया / प्रदीप जिलवाने

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ये क्या कि मैं
अपनी ही गंध से
तहस-नहस हुआ जाता हूँ

ये क्या कि मैं
अपने ही देह के आलोक से
किसी तरह बचता बचाता हूँ
ये क्या कि मैं
अपने अधूरेपन को
अपनी परछाई से जोड़कर देखता हूँ

क्या मैं बारिश में
आकाश से टपका हुआ कोई मेंढक हूँ ?
झींगुर हूँ कोई ?

कौन हूँ मैं ?
क्या मैं रक्तरंजित इतिहास हूँ ?
क्या अपने से शर्मसार वर्तमान हूँ मैं ?
या अनिश्चय के अतल में डूबा भविष्य हूँ ?

कौन हूँ मैं ?
(स्मृति के खो जाने की स्थिति)