भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्मसमर्पण / उमा अर्पिता

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 8 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |अनुवादक= |संग्रह=धूप ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आकाश में विचरते
स्वछंद पंछियों की भाँति
तुम्हारी यादें
रोमिल पंखों से युक्त
मेरे हृदयाकाश पर
उड़ान भरती हैं, तब
एक ऐसी गुनगुनाहट
जन्म लेती है, जिसे
तुम्हारे होंठ
आत्मसात करने के
इच्छुक होते हैं, पर
तुम्हारा झूठा अहं उन्हें
ज़बरन रोके रखता है,
लेकिन जब--
मेरी खिलखिलाहटें
तुम्हारी उदासियों पर
बरसने लगती हैं, तब
उनकी सुगंधित बौछारों में
तुम्हारा अहं बिखरने लगता है, और
तुम स्वीकारात्मक मुद्रा में
नत-मस्तक हो उठते हो!
तब मैं--
अपनी सफलता के दर्प में चूर
हठीली/गर्वीली
बालिका-सी
तुम्हारे आत्मसमर्पण पर
मुस्करा उठती हूँ।