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सत्य / जयप्रकाश कर्दम
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वे सत्य देखते हैं
सत्य सुनते हैं
सत्य बोलते हैं
लेकिन पूरा नहीं
उतना ही
अनुकूल होता है जितना
सरल नहीं सत्य को
सत्य की तरह कहना
किंतु, खतरनाक होता है अर्द्ध सत्य
दुश्मन हैं वे मनुष्यता के
जो सत्य को देखकर
आंखें मींच लेते हैं
अनसुना कर देते हैं सुनकर
और रह जाते हैं मौन
हत्यारे हैं वे सत्य के
जो सत्य को नहीं रहने देते सत्य
उसके साथ बलात्कार कर
तार-तार करते हैं
सत्य के आवरण में
असत्य के शूल हैं
मनुष्यता की आंखों में धूल हैं।