भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंछी चल / जयप्रकाश कर्दम
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:41, 20 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश कर्दम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पंछी चल अब अपनी चाल।
छोड़ पुराने नीड़ बना निज जीवन को सुखहाल।
अब तक मेरी कैद रहा तू
जिधर उड़ाया उधर उड़ा तू
मन बंधन से मुक्त हुआ अब जा ऊंचे आकाश।
पंछी चल अब अपनी चाल।
तूने बहुत मुझे था माना
हाय तुझे क्या मैं पहचाना
समझा पोखर मैं दरिया को रहा मेरा अज्ञान।
पंछी चल अब अपनी चाल।
कितनी देर रहा तू संग
कितने छेड़े नए प्रसंग
देख निस्संग अकेला मुझको क्यों होता बेहाल।
पंछी चल अब अपनी चाल।
नील गगन अब तेरा बसेरा
मुझको प्रिय धरातल मेरा
रह आह्लाद निमग्न परिंदे मुझको नहीं मलाल।
पंछी चल अब अपनी चाल।