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मरुथल में चट्टान / अज्ञेय

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चट्टान से टकरा कर हवा
उसी के पैरों में लिख जाती है
लहरीले सौ-सौ रूप
और तुम्हारे रूप की चट्टान से
लहराता टकरा कर मैं?

अपने ही जीवन की बालू पर
अपनी साँसों से लिखा रह जाऊँगा।