भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक ऑटोग्राफ / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 11 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अल्ला...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अल्ला रे अल्ला
होता न मनुष्य मैं, होता करमकल्ला।
रूखे कर्म जीवन से उलझता न पल्ला।
चाहता न नाम कुछ, माँगता न दाम कुछ
करता न काम कुछ, बैठता निठल्ला-
अल्ला रे अल्ला