भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निशानी / विपिन चौधरी

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पृथ्वी ने अपने गर्भ की तरफ ऊँगली की

स्त्री के अपने
हाथ में सने गीले पलोथन
और पांवों में फटी बवाइयां की ओर इशारा किया

हरियाले पेड़ ने अपनी उदासी दर्शाते हुए अपना पीला पत्ता झाड़ा

थके-मांदे सूरज ने
पसीने से भरा अपना अंगोछा चाँद के कंधे रखा
तब उसके श्रम ने आकार लिया

चीज़ें जब तक अपनी निशानदेही न दिखलाये
उन्हें समझे कौन