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द्वंद्व / राजेन्द्र जोशी
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धरती के रथ पर
शासन की बागडोर
उसका मेरा
मेरा उसका
क्या है कब जाना
हिंसा और अहिंसा के
द्वंद्व में रोई थी
सूझ बूझ कहीं कोने में
भोग विलास की
सेनाएं सामने खड़ी थीं
संयम तरस रहा था छांव को
देख दुपहरी
हर पल
चारों ओर
कोलाहल ही कोलाहल
धरती का रथ
युद्व के अंत पर थमेगा
और अंत......???