भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शुक्रवार की आरती / आरती
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:05, 31 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKDharmikRachna}} {{KKCatArti}} <poem> आरती लक्ष्मण बाल जती की। असुर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आरती लक्ष्मण बाल जती की। असुर संहारन प्राणपति की॥
जगमग ज्योति अवधपुरी राजे। शेषाचल पर आप विराजे॥
घंटाताल पखावज बाजै। कोटि देव आरती साजै॥
क्रीटमुकुट कर धनुष विराजै। तीन लोक जाकि शोभा राजै॥
कंचन थार कपूर सुहाई। आरती करत सुमित्रा माई॥
प्रेम मगन होय आरती गावैं। बसि बैकुण्ठ बहुरि नहीं आवैं॥
भक्ति हेतु हरि लाड़ लड़ावै। जब घनश्याम परम पद पावैं॥