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सरोद / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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मौत अपनी, न अमल अपना, न जीना अपना
खो गया शोरिशे-गेती में करीना अपना
नाख़ुदा दूर, हवा तेज़, करीं कामे-नेहंग
वक्त है फेंक दे लहरों में सफ़ीना अपना
अरस-ए-दहर के हंगामे तहे-ख्वाब सही
गरम रख आतिशे-पैकार से सीना अपना
साकीया रंज न कर जाग उठेगी महफ़िल
और कुछ देर उठा रखते हैं पीना अपना
बेशकीमत है ये ग़महा-ए-मुहब्बत मत भूल
ज़ुल्मते-यास को मत सौंप ख़ज़ीना अपना