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द्वन्द्व / सुलोचना वर्मा
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बंद कमरे में गूँजती खामोशी
कई सिलवटें माथे पर
और कुछ सीने पर भी
दिल और दिमाग़ की
प्रतिस्पर्धा चल रही है
वो रेत जिन्हें हम
पिछले मोड़ पर छोड़ आए थे
हमारा पीछा करती हुई
आँखो में आ पड़ी है
गुज़रा हुआ पल गुज़रता नही
वक़्त का तूफान उन्हें एकदम
अचानक ला धमका है
सागर में से मोती
चुनकर निकाला था उसने
अब आँसुओं से अपने
कीमत चुका रहा है
क्या ज्यादा कीमती था
मोती या आँसू
कौन बता सकता है
ज़िस्म के बाज़ार मे
आँसुओं की कीमत नही
सीप मोतिओं को
मुफ़्त मे बाँटता है
हर परिस्थिति का
अपना एक पहलू है
द्वंद तो ये है
दिल और दिमाग़ की लड़ाई में
कौन जीतता है