भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जलरुद्ध दूब / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 26 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन }} मौन क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौन के सागर में

गहरे गहरे

निशिवासर डूब रहा हूँ


जीवन की

जो उपाधियाँ हैं

उनसे मन ही मन ऊब रहा हूँ


हो गया ख़ाना ख़राब कहीं

तो कहीं

कुछ में कुछ ख़ूब रहा हूँ


बाढ़ में जो

कहीं न जा सकी

जलरुद्ध रही वही दूब रहा हूँ ।