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अपना ही घर / त्रिलोचन

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महल खड़ा करने की इच्छा है शब्दों का

जिसमें सब रह सकें, रम सकें, लेकिन साँचा

ईंट बनाने का मिला नहीं है, अब्दों का

समय लग गया, केवल काम चलाऊ ढाँचा


किसी तरह तैयार किया है । सबकी बोली-

ठोली, लाग-लपेट, टेक, भाषा, मुहावरा

भाव, आचरण, इंगित, विशेषता फिर भोली

भूली इच्छाएँ, इतिहास विश्व का, बिखरा


हुआ रूप-सौन्दर्य भूमिका, स्वर की धारा

विविध तरंग-भंग भरती लहराती गाती

चिल्लाती इठलाती फिर मनुष्य आवारा

गृही, असभ्य, सभ्य, शहराती या देहाती--


सबके लिए निमंत्रण है अपना जन जानें

और पधारें इसको अपना ही घर मानें ।