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भरी दुपहरी / बुद्धिनाथ मिश्र

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भरी दुपहरी
मारी-मारी फिरे डाल पर
पतछाँही के लिए गिलहरी
भरी दुपहरी ।

उलटी धूपघड़ी की टिड्डी
चाट गई सब हरियल सपने
तलवे जले घाट धोबिन के
मरी सीपियाँ लगीं चमकने ।

भरी दुपहरी
सूखे का बैताल नाचता
हुई दिशाएँ अन्धी-बहरी
भरी दुपहरी ।

रुत के मारे हुए कुँओं के
माथे पर मकड़ों के जाले
झूठी-सच्ची आग लगाकर
दुबकी हवा कहीं परनाले ।

भरी दुपहरी
पानी-पानी चिल्लाती है
बेपर्दा हो नदिया गहरी
भरी दुपहरी ।