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आँसू वन्दनवार / रमेश रंजक
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तुम आए, बोझिल पलकों के
आँसू वन्दनवार हो गए
रूप-राशि दर्पण भर आँगन
दोनों एकाकार हो गए
अधराधर सी गए, झुके दृग
कैसे करें पीर अगवानी
कल जो प्यास गगन छूती थी
आज हो गई पानी-पानी
उपालम्भ से भरे, अधलिखे
छन्द मंगलाचार हो गए
कुटिया शीशमहल-सी दमकी
जगह-जगह भुजबन्धन झूले
समय-- लगा स्नेह का गुणनफल
तन झूमा मन की ख़ुशबू ले
मेरी निर्धनता को तेरे
बाजू नौलखा हार हो गए