भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चौपाई / मुंशी रहमान खान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 12 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुंशी रहमान खान |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
यही वर्ष तारीख महीना। लालरूप जहाल नवीना।। 1
चार सौ आठ लिए नर नारी। पहुच्यो आय शहर परमारी।। 2
प्रथम जहाज यही यहँ आयो। भारतवासी लाय बसायो।। 3
दुइ जाति भारत से आए। हिंदू मुसलमान कहलाये।। 4
रही प्रीति दोनहुँ में भारी। जस दूई बंधु एक महतारी।। 5
सब बिधि भूपति कीन्ह भलाई।
दुख अरु विपति में भयो सहाई।। 6
हिलमिल कर निशिवासर रहते।
नहिं अनभल कोइ किसी का करते।। 7
बाढ़ी अस दोनहुँ में प्रीति। मिल गए दाल भात की रीती।। 8
खान पियन सब साथहिं होवै। नहीं बिघ्न कोई कारज होवै।। 9
सब विधि करें सत्य व्यवहारा। जस पद होय करें सत्कारा।। 10
दोहा
यहि प्रकार से बसत यहं गए बहुत दिन बीति।
करैं कर्म दोउ धर्मयुत कोइ नहिं बांटी प्रीति।। 2