भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अरगनी / महेश उपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाँध गई रातें भुजबँधनी
अनदेखी एक अरगनी

यादों की एक तेज़ धार
काट गई नींद का कगार
डूब गए घाट के महल
रूख ढह गए अगल-बगल

हम ज्यों-ज्यों दुहराए कूल-से
हवा हुई और कटखनी ।