नग्नता / नीलोत्पल
(एक)
बहुत मुश्किल है अपने नहीं कहे को आवाज़ दे पाना
परिंदं भले होते हैं
वे उन अज्ञात रास्तों को आवाज़ देते हैं
जो छिपे होते है
घरों, जंगलों और भीतर
हम उन बताई जगहों की ओर बढते हैं
जिनकी सूचना मिलती है अप्रमाणित युद्धों में
उन बिखरावों में जो हमारे टूटे अनुभवों की
दांस्तानां में भरी पड़ी
लेकिन यह प्रेम को आवाज़ देने जैसा नहीं है
अंतहीन खोहों से भरा है प्रेम
अनगिनत बांबियों और घांसलों से
इसका व्यक्त भी अव्यक्त है
और अव्यक्त भी व्यक्त
बहुत मुश्किल है मैं अपने नहीं कहे को जानूं
मैं एक विपरीत दिशा वाला व्यक्ति
कहूं कि मेरी वह छिपी आवाज़ का प्रस्फुटन
कविता की तरह है तो
यह आवाज़ की तरह नहीं
उस दबी पहचान की तरह है
जो नहीं कहे से बाहर है
याने परिंदों की तरह के रास्ते असंभव नहीं
(दो)
जब मैं अपनी आवाज़ दोहराता हूं
ख़ासकर चीज़ों के रेशों, कोमल घासों,
प्रेम की अंतहीन सांसों और पत्तों पर बिछी बूंदों के साथ
या उन्हें लिए तो हर बार एक समुद्र का अंधेरा
छंट जाता है
एक मूर्ति अपने तराशे शिल्प से झांकती
खो जाती है पुनः नहीं रचे एक नए शिल्प की ओर
नहीं लिखी पंक्तियां लिख ली जाती है
जीवन के संकेत दोहराए जाने से
जिन्हें शायद कभी पहचान मिल सकेगी
जितनी अस्पष्ट स्मृतियां है
उनकी धंधलायी चमक से
रगड़ खाती आवाजें
जैसे किसी वाद्य के तार लटके हो
पेड़ों पर
हवा उनसे बार-बार टकराती है
हम सुनते ये आकस्मिक संगीत
लौटते हैं रोजमर्रा की गलियों में
दोहराता हूं ख़ुद को
संगीत, प्रेम और तुम्हें
ताकि गुम होने से पहले
लिपट सकूं भरसक