भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी / जनकवि भोला

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:50, 16 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जनकवि भोला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं आदमी हूं
भर दिन मेहनत करता हूं
देखने मेें जिंदा लाश हूं
लेकिन.....
मैं लाश नहीं हूं
मैं हूं दुनिया का भाग्य विधाता
जिसके कंधों पर टिकी हैं
दैत्याकार मशीन
खदान, खेत, खलिहान
जी हां, मैं वहीं आदमी हूं
जिसके बूते चलती है
ये सारी दुनिया
जिसे बूते बैठे हैं
ऊंची कुर्सी पर
कुछ लोग
जो पहचानते नहीं
इस आदमी को
समझते नहीं
इस आदमी को
नहीं, नहीं,
ऐसा हरगिज नहीं
मैं होने दूंगा
अपनी पहचान मिटने नहीं दूंगा
क्योंकि
मैं आदमी हूं
हां, हां,
मैं वही आदमी हूं।