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निरक्षरता अगर इस देश की काफ़ूर हो जाए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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निरक्षरता अगर इस देश की काफ़ूर हो जाए।
मज़ारों पर चढ़े भगवा, हरा सिंदूर हो जाए।
हसीं मूरत को दिल में दो जगह, सर पे न बैठाओ,
जहाँ से गिर पड़े तो पल में चकनाचूर हो जाए।
हसीना साथ हो तेरे तो रख दिल पे ज़रा काबू,
तेरे चेहरे की रंगत से न वो मशहूर हो जाए।
लहू हो या पसीना हो बस इतना चाहता हूँ मैं,
निकलकर जिस्म से मेरे न ये मगरूर हो जाए।
जहाँ मरहम लगाते हैं वहीं फिर घाव देते हैं,
कहीं ये दिल्लगी उनकी न इक नासूर हो जाए।