भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारी पांती / निशान्त
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 9 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुढाप मांय आय’र
सै सौक मिटग्या
घर में कोई काम
सुळटेड़ो
लाखां रो लागै
मन मांय कदे कीं आवै
पण तिनखा सारी
टाबरां पर लाग ज्यावै
म्हारै पांती तो
फगत अै छुट्टी आवै ।