भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जूनी हेली / निशान्त
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 9 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कित्ती बोदी
पड़गी आ
बंद पड़ी जूनी हेली
रंग हुयग्यो बदरंग
नींव खा’गी
सुरसरी
जे ईं नै
भार-झाड़’र कोई
रेवणो चावै
तो स्यात ई बींनै
ईं मांय
नींद आवै
हां, ईं रो
असल मालक
जे चावै
तो रैय सकै
कई दिन
पुरानी यादां सागै
जक्यां मांय है
गीत-राग
रमता टाबरिया
आंवता मिजमान
बणता पकवान ।