मेरा गाँव / सूरजपाल चौहान
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!
कच्ची मड्डिया
टूटी खटिया
घूरे से सटकर
बिना फूँस का—
मेरा छप्पर
मेरे घर न
कौए की काँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!
उनके आँगन
गैया बछिया
मेरे आँगन
सूअर, मुर्ग़ियाँ
मेरे सिर
उनकी लाठी
बेगारी करने को गाँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!
उनका खेत
उन्हीं का बैल
और उन्हीं का है ट्यूब-वेल
'मेरे हिस्से मेहनत आयी
उनके हिस्से है आराम'
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!
ब्याह-बरात का—
काम कराते
देकर जूठन बहकाते
जब मरता है
कोई जानवर
दे-देकर गाली उठवाते
दिन-रात
ग़ुलामी कर-करके
थक गये—
बिवाई फटे पाँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!
उनका दूल्हा
चढ़ घोड़ी पर
घूमे सारा गाँव-गली
मेरी बेटी की शादी पर
कैसी आफ़त आन पड़ी
जिन पर आया—
घोड़ी चढ़ वो
अलग पड़े हैं दोनों पाँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!