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कुक्कुटी / श्रीधर पाठक

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कुक्कुट इस पक्षी का नाम,
जिसके माथे मुकुट ललाम।
निकट कुक्कुटी इसकी नार,
जिस पर इसका प्रेम अपार।
इनका था कुटुम परिवार,
किंतु कुक्कुटी पर सब भार।
कुक्कुट जी कुछ करें न काम,
चाहें बस अपना आराम।
चिंता सिर्फ इसकी को एक,
घर के धंधे करें अनेक।
नित्य कई एक अंडे देय,
रक्षित रक्खे उनको सेय।
जब अंडे बच्चे बन जाएँ,
पानी पीवें खाना खाएँ।
तब उनके हित परम प्रसन्न,
ढूंढे मृदु भोजन कण अन्न।
ज्यों ज्यों बच्चा बढ़ता जाय,
स्वच्छंदता सिखावे माय।
माँ जब उसे सिखा सब देय,
बच्चा सभी, आप कर लेय।

-(रचना तिथि: 8.4.1906, श्रीप्रयाग;)
मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विकास, 23