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चकोर / श्रीधर पाठक

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धन-धन सुगढ़ चकोर
तू खग-कुल आगरिया,
पाले नियम कठोर
कि वंश उजागरिया।
चंद तेरा चितचोर
तू उस पर बावरिया,
लख-लख उसकी ओर कि
होय निछावरिया।
चुगती अग्नि अंगार
तू दृढ़ प्रण रावरिया,
धन वन प्रेम अपार
कि प्रेमिन नागरिया।

-रचना तिथि: 26.7.1909, नैनीताल
मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 21