भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिलेंगे कभी / असंगघोष
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=समय को इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कभी
किसी मोड़
पर
मिले तो
यह बढ़ते कदम
ठिठक जाएँगे।
कुछ क्षण
उसी वक्त याद आएगी
तुम्हारी हर करतूत
मेरी आँखों के
सामने तैर जाएगी
तुम्हारा हर अत्याचार
अपनी
अंगार आँखों से
उड़ेलूँगा
सारी नफरत
तुम पर,
और बढ़ जाऊँगा आगे।