भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन और फाग / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:21, 30 जनवरी 2016 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फागुन तौ बालक विनोद हित अहै उजागर।
ज्यों ज्यों होली निकट होत अधिकात अधिक तर॥
सजत पिच्चुका अरु पिचकारी तथा रचत रंग।
नर नारिन पैं ताहि चलावत बालक गन संग॥
गावत और बजावत बीतत समय सबै तब।
भाँति भाँति के स्वाँग बनावत मिलि बालक सब॥
हँसी दिल्लगी गाली रंग गुलाल उड़त भल।
देवर भौजाइन के मध्य सहित बहु छल बल॥