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मूर्ति / निदा नवाज़
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मैं दुखों की छैनी से
तराशता हूँ अपनी
जीवन शिला
और एक दिन
खड़ी हो जाती है
मेरे समक्ष
स्वयं मेरी मूर्ति
दुखों की नाशक बनकर.