भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बगरो / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:13, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमरा घरऽ में
बगरो केरऽ बसेरा छै
फुर्र-फुर्र करतें
चहकतें रहै छै
कखनू मोखा पेॅ
तेॅ कखनू ओसरा पेॅ
कखनू कबूत्तर के भाँड़ी में
तेॅ कखनू अँगना में लागलऽ
लऽत पतारऽ में
नुका छिपी करतें रहै छै
पचासों बगरो के
एगो हूजूम
जेकरऽ बासऽ छै हमरा हाँ
पर काल्हू सें
निपता छै
कल भोरे जखनी
पाठा केॅ
बलिदान दै लेली
नहबाय सोहनाय केॅ
गोसाँय लगाँ
लानलऽ गेलै
तखनी तालुक तेॅ छेलबे करलै
जेन्है पाठा के गरदन पेॅ
काता चललै
लहू केरऽ छींटा
छितराय गेलै सगरे
अँगना में
धड़ सें कटलऽ गरदन
बाय में छटपट करेॅ लागलै
तखनियें
बगरो केरऽ हूजूम
अँगना सें उड़ी केॅ
जे फुर्र पार होलऽ छै
अखनी ताँय
नजर नै ऐलऽ छै।