भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दंगा / कुंदन अमिताभ

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:14, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दंगा देखी केॅ
दंगा झेली केॅ
दंग रहै वाला दिन तेॅ
नै रहलै अबेॅ
उत्पात मारधाड़ आरो
भावना सें खेलवाड़
छुच्छे यहेॅ नै रही गेलै
दंगा केरऽ मतलब
दंगाँ तेॅ सरकार गिरबाबै छै
दंगाँ कुर्सियो दिलबाबै छै
दंगाँ इमेज संवारै छै
दंगाँ कसौटी बनाबै छै
सौंसे देशऽ केॅ हिलोरै छै
जन-जन केॅ तोड़ै छै
समाजऽ में एगऽ गीर्ह छोड़ै छै
दंगाँ परिभाषित करै छै
हर बार दंगा होला पेॅ
हर धरम क हर दिल क
आपनऽ तरीका सें
आरो इ परिभाषा में
मानव मानव कहाँ रहै छै
आदि मानव भी नै
रहै छै खाली वू
सृष्टि केरऽ सब सें
वाहियात आरो घिनौनऽ रूप
जेकरऽ तुलना
केकरौ सें नै करलऽ जाबेॅ पारेॅ
स्वार्थी भेड़ियों सें नै
कैन्हे कि इ तं जानवर छेकै
आरो मानव तखनी
महाजानवर
बनी चुकलऽ रहै छै।