भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कलेॅ-कलेॅ / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कलेॅ-कलेॅ
गरै छै दूध
गाय केरऽ थऽन सें
दोल भरी जाय छै
कलेॅ-कलेॅ।
कलेॅ-कलेॅ
टपकै छै बूँद
सरंग सें
सागर भरी जाय छै
धरती तरी जाय छै
कलेॅ-कलॅे
कलेॅ-कलेॅ
बिखरै छै चाँदनी
चान सें
हृदय थमी जाय छै
दिल बहुराय छै
कलेॅ-कलॅे
कलेॅ-कलेॅ
भरै छै आग
सीना में मानव के
जोद्धा बनी जाय छै
देशँ के दुश्मन केॅ
धूरा चटाय छै
जंगभूमि में
कलेॅ-कलॅे